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non functional thoughts

‘অকার্যকর চিন্তার প্যাভিলিয়ন’ একত্র করে সেইসব জিনিস, যা খুব কমই টিকে থাকে—অর্থহীন এক স্ফুলিঙ্গ, পথভ্রষ্ট এক ব্যর্থতা, উদ্দেশ্যের বাইরে ভেসে বেড়ানো এক বিরতি। যা আমরা শিল্পকর্ম হিসেবে দেখি, তা আসলে কেবল অবশেষ—আরও বৃহৎ কিছুর জীবাশ্ম। এখানে খণ্ডাংশ আর সূচনা পাশাপাশি অবস্থান করে: এক টুকরো নোট, একখানা স্কেচ, এক অসমাপ্ত ইঙ্গিত। সব মিলিয়ে তারা গড়ে তোলে এমন নক্ষত্রমালা, যার কোনো সমাপ্তি নেই; এমন পথবিচ্যুতি, যার কোনো গন্তব্য নেই। এই প্যাভিলিয়ন বস্তু নয়, বরং চিন্তার অদৃশ্য অবস্থাগুলোর কথা বলে—কঠিন হয়ে ওঠার আগে, কিংবা গলে গিয়ে হারিয়ে যাওয়ার পরে। এখানে ‘কাজ’ (ইমেজ) হলো এক ঘোষণাপত্র, আর পাঠ্য নিজেই হয়ে ওঠে আসল কাজ।

"ग़ैर-कार्यात्मक विचारों का मंडप" उन चीज़ों को समेटता है जो विरले ही बच पाती हैं—बेतुकी चमक, भटका हुआ असफल क्षण, वह ठहराव जो उद्देश्य से अलग होकर स्वतंत्र बह जाता है। जिसे हम कला-कृति के रूप में देखते हैं, वह वास्तव में केवल अवशेष है, किसी और विशाल चीज़ का जीवाश्म। यहाँ टुकड़े और आरंभ एक साथ विद्यमान रहते हैं: एक नोट, एक रेखाचित्र, एक अधूरा इशारा। ये सब मिलकर ऐसी नक्षत्र-रचनाएँ बनाते हैं जिनका कोई अंत नहीं, ऐसे मोड़ जो किसी मंज़िल तक नहीं पहुँचते। यह मंडप वस्तुओं से कम और विचार की उन अदृश्य अवस्थाओं से अधिक जुड़ा है—जब वह अब तक कठोर नहीं हुआ, या जब वह बहकर विलीन हो चुका हो। यहाँ "कृति" (छवि) एक कथन है और पाठ स्वयं कृति बन जाता है।

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a pavilion of non-functional thoughts

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